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सफ़र

अंदाज़-ए-सफ़र मेरा देखकर जो फ़िक़रे कसने बैठें हैं  मेरे दर्द किसी ने न समझे मेरे घाव किसी ने न देखे रस्ते में मिले कंकर-कांटे, जो बस मेरे हिस्से आए थे  मेरा लहू किसी ने न समझा, मेरे पांव किसी न न देखे।।                                             ।। गौरव प्रकाश सूद।। #दर्दकाकारवां #ऐसावैसाwriter 30 नवम्बर 2025 11:45                                           

वक़्त

इंतज़ार है जिसका वो शक्स भी आ जाए या फिर के ऐसा हो कोई ख़त ही आ जाए है अग़र होना यही अंजाम-ए-वक़्त हमारा तो इक दुआ है आख़िरी वो वक़्त ही आ जाए।।                                    ।। गौरव प्रकाश सूद।। #दर्दकाकारवां #ऐसावैसाwriter 04 नवम्बर 2025 00:30

ख़त

हाला

पर्बत, जंगल नप जाते हैं सागर की भी कोई औक़ात नहीं  गहराई आँखों की नापना ये सबके तो बस की बात नहीं।। पी पीकर पैमानों से जिस्म सब बिख़र-बिख़र से जाते हैं  कम ही होते हैं जाम कोई जो बिन पीये ही चढ़ जाते हैं।। तुम वही जाम हो आँखें तुम्हारी कुछ अलग़ ही मय टपकाती है ऐसी हाला जिससे मदिरा सब जल जलकर जल जाती है।।

काला अक्षर

मैं एक काले अक्षर की भांति तुम्हारे पत्रों पर रच जाऊंगा और छूट न पाऊंगा कभी, अंतिम प्रयास के बाद भी। तुम्हारे पास कोई विकल्प बचेगा नहीं अतिरिक्त इसके के तुम फाड़ दो उन पत्रों को या रख दो उसे आग की लपटों के बीच। तब संभव है कि मैं उन लपटों का उड़ता धुआँ बन जाऊँ तब भी मैं उन पत्रों को साथ लेकर उडूंगा जो मुझे अमर, अजर, अवध्य कर देगा चुंकि तब मैं पत्रों पर न दिखूं शायद,  पर रच जाऊंगा तुम्हारे घर - आंगन की किसी भीत या छत पर और उससे भी अधिक तुम्हारे मन केे भीतर। अब से तुम मुझसे अपना मन छुड़ा न पाओगी,  न ही छुड़ा पाओगी उन सांसों को जो मुझे छूकर तुम से निकलेंगी तब मूझे और केवल मुझे ही दोहराएंगे तुम्हारे हृदयस्पंदन।  तब मेरा रंग-रूप काला अक्षर या काला धूआँ नहीं रहेगा तद्पश्चात बन जाऊंगा मैं- श्वेत हृदयस्पंदन, नर्म सांसे तुम्हारी, यदा-कदा टपकूंगा आँखों से तूम्हारी अश्रू बनकर और जिस दिन ऐसा होगा, हो जाऊंगा मैं और भी पावन। जो गंगा न हो सके इतना पावन, आकाश गंगा न हो सके वो पावन,  श्वेत पवित्र अनछुए बादलों से भी पावन। तुम्हारी आँखों से टपकने के बाद हो जाऊँगा मैं सबसे पावन अमर, अजर ...

बज़्म

बज़्म में उसने बुलाया मग़र खाली जाम तक न मिला हांलांकि यहीं चल रहा है मयकदों का सिलसिला अब चिंता पर इतनी हैं के हम बैठें या लौट जाए या फिर यूं करें इक जाम छींने और डूबकर के मर जाएं।।                                         ।। गौरव प्रकाश सूद।। #दर्दकाकारवां #ऐसावैसाwriter 31 अक्टूबर 2025 09:45

प्रेम निवेदन

ये प्रेम निवेदन अंतिम है, तुम सुन लो तो कोई बात बने जो बची कुची जिंगारी है होने वाली जो ख़ाक छने तुम एक बार बढ़कर के तो अपने अंगों को देखो तो जैसे सेंका करता था मैं आँखों को उनपर सेंको तो दुनिया में कोई नहीं ख़ुदको उतना सुंदर तुम पाओगी ये सच मानों मेरी ही तरह अपने प्यार में तुम गिर जाओगी एक नज़र झुका कर देख तो लो झंघा अपनी ये सोने की जो सिरहाना थी मेरे लिए सो जाने की और रोने की फिर एक झलक़ ताकों अपने पल्लू से दबे कटि भाग को चिपका रहता था हाथ जहां ख़्वाबों में हर इक रात को और देखो ऊपर पर्बत दो केशों के भार से ढंके हुए ज्यूं फल छुप जाते शांक के नीचे भरे पेड़ पर लदे हुए ज़ुल्फ़ों को पीछे कर देखो गर्दन है जैसे मोड़ कोई दुनिया में न ख़्वाबों में जिसका आज तलक़ न तोड़ कोई जिसके रस्ते से पानी भी चमके जैसे कोई सोने सा बेचैनी का कारण मेरा, ये कारण परियों के रोने का चेहरा जैसे कोई ख़्वाब हंसी पाबंदी जिसको छूने की दी जिसने थी उम्मीद जगा जीवन इस सूने-सूने की