तुम्हारी यादें या धुआँ
दिनभर की थकान जब रात का रूप ले लेती है
तब तुम्हारी याद आती है, बहुत याद।
जिनसे परेशां होकर मैं खिडकी पर जा खड़ा होता हूँ
और तुम्हारी याद हवा के झोंकों का रूप ले लेकर
कभी मेरे गालों को छूती है तो कभी मेरे बालों को।
जिनसे से पीछा छुड़ाने के लिए
मैं आख़िरकार सिगरेट जला ही लेता हूँ,
तुम्हारी याद अब धुआँ बन चुकी होती है और मुझे लगता है कि तुम्हारी यादें सिगरेट ख़त्म होते-होते धुआँ बनकर उड ही जाएंगी।
मगर ऐसा नहीं होता,
मैं जानता हूँ तुम्हारी यादें अब भी मेरे भीतर हैं,
जो सिगरेट के धुंए के रूप में कहीं गहराई पकड चुकी है
जहाँ से उसे बाहर निकालना लगभग नामुमकिन सा है।
मैं जानता हूँ वो यादें कभी बाहर नहीं आने वाली,
अगर आई भी तो आएंगी कोई नासूर बनकर,
जिनका जब जाने का समय आएगा
तब साथ जाना पड़ जाएगा मुझे भी।
तब वो एक बार फिर से धुएँ का रूप लेंगी मुझे भी अपने साथ धुआँ बनाकर उड़ा ले जाने के लिए।
लेकिन इतना होने पर भी
न ही तुम्हारी यादें मुझसे छूट पाएंगी और न ही मैं तुम्हारी यादों से।।
।। गौरव प्रकाश सूद।।
#दर्दकाकारवां
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