आधी रात

जागती आधी ख़ामोश रात और चुप सी तन्हाई में हम दोनों।
तुम उस कमरे में, मैं इस कमरे में
तुम वहाँ अंदर, मैं यहाँ बाहर
तुम भी जागी मैं भी जागा
तुम भी चुप मैं भी चुप
एक ही शोर दोनों के भीतर,
इस कमरे से कमरे के बीच की ये दूरी
और इस दूरी के दरमियां वो जो हो चुका
वो जो हुआ नहीं, वो जो हो सकता था।
हम दोनों के इक-दूजे की ओर उठते क़दम
जो बार बार ठहर रहें हैं।
न जाने ये कोई डर है या कुछ और
तुम्हारा जागकर मेरे बारे में सोचना
मेरा जागकर तुम्हारे बारे में लिखना।
फिर सारी रुकावटें भेद कर तुम्हारा अचानक से
बाहर आकर मुझे घूरना और कहना।
तुम्हें अपने घर चले जाना चाहिए। 

इन शब्दों ने मेरी हर कविता की कमर तोड़ दी
और मेरे सारे भ्रम।।
                                    ।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
29 अगस्त 2025
05:56


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