आप शोला हो तो मैं बस शरारा हूँ
आप समुंदर हो, मैं कोई क़तरा खारा हूँ
आपकी इस बात का बस इतना जवाब है
आप पूरा आसमान हो, मैं बस एक सितारा हूँ
।।
।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
29 सितम्बर 2025
05:40
तुम्हें याद है तुम्हारे जाने से पहले हम दोनों बीच पर गए थे और तुम हमेशा की तरह ज़बरदस्ती मुझे खींचकर पानी में ले जाना चाहती थी, तुम्हारी बहुत कोशिश करने पर भी मैंनें तुम्हारी बात नहीं मानी, तुम रूठ सी गई फिर तुम्हारा ध्यान भटकाने के लिए मैंनें मसाला चने ख़रीद तुमको थमा दिए जिसे बिना चखे तुम चनेवाले के पास ले गई और उसमें और भी मसाला डलवा दिया, मैं तुम्हें कुछ न कह सका इस डर से के तुम कहीं फिरसे न रूठ जाओ। तभी एक कमज़ोर सा जवान लड़का छोटे से कैमरे पर बड़ा लैंस लगाए हम दोनों तक आया और अपने हाथ में पकड़ी चार-पाँच तस्वीरें तुम्हारी आँखों के सामने कर दीं। तुमने फोटो खिंचवाने की इच्छा जताई, मैंनें भी हाँ में सिर हिलाया, पर तुमने चाहा के पहले चने खाकर हाथ खाली कर लिए जाएं तभी फोटो खिंचेंगी चुँकि तुम्हें अच्छे - खासे पोज़ भी देने थे। तो फोटोग्राफर हमसे थोड़ी दूर ही खड़ा रहा ताकि जैसे ही तुम्हारे चने ख़त्म हों वो अपनी कमाई कर सके। चने ख़त्म होने के बाद तुमने फोटो के लिए हामी की और मैं तुम्हारा हाथ पकड़ तुम्हें पानी में ले गया, तुम बहुत खुश और इच्छुक लग रही थी, हमने एक साथ कई तस्वीरें खिंचाई इतनी...
ये जो घर से बाहर के लोग होते हैं न, ये कहीं के नहीं होते। कुछ बनने के लिए, कुछ करने के लिए बाहर चले जाते हैं और वहाँ भी बाहर के ही रहते हैं। कभी-कभी, किसी बहाने से घर आते हैं, पर घर अब अपना रहा कहाँ, अब अपने ही घर में मेहमान से हो गए हो। कहने को ठीकाने दो-दो होते हैं, एक घर और एक बाहर पर सच में तो इनका कोई ठिकाना होता ही नहीं। सालों लगा देते हैं कोई ठौर बनाने में,पर कोई ठौर मिलती ही कहाँ है। सपने बहुत आते हैं पर निंद पलभर भी नहीं प्यार सबसे करते हैं पर पास कोई भी नहीं कभी-कभी लगता है कोई साथी भी है शायद पर साथ कौन होता है। जैसे एक सांस आने के बाद उसका लौटना ज़रूरी होता है न ठीक वैसे ही ज़रुरी हो जाता है घर से वहाँ लौटना जहाँ ये रहते हैं या जीते हैं या बस जीवन काट रहें होते हैं । वही जो इनका घर नहीं आफ़िस होता है और कोई अपने काम से या आफ़िस से कितना भी प्यार करता हो लेकिन वहाँ से लौटना ज़रूरी है। पर अब लौटे कहाँ, अब ये अपने शहर-अपने गाँव में मेहमान से हो गए हैं, अब न इनको अपना घर अपना लगता है, न शहर न गाँव, घर के जिस कौने या क़मरे को ये अपना समझा करते थे, अब वो भी इनको भूल गय...
एक फोटोग्राफर है। जो किसी पुराने स्टाईल के कैमरा से फोटोग्राफी करता है। वो समलैंगिक है, जो उसके हाव भाव में भी दिखता है। उसके घर कि दीवारों पर सैकड़ों फोटोज़ लगी हैं। भरे पूरे मर्दों की और कुछ औरतों की। एक दिन वो किसी लड़की की फोटो खिंचता है और दीवार पर लगा लेता है। अगले दिन एक औरत किसी को ढूंढती हुई उसके पास आती है, उसने अपने घर में ही स्टूड़ियो बना रखा है या यूँ कहलें के स्टूड़ियो को घर बना रखा है। वो औरत उस लड़की की माँ होती है जिनकी तस्वीर इसने कल खींची थी। वो औरत उससे आके पूछती है अपने बच्चों के बारे में, वो कह देता है के उसे नहीं पता उसके पास कोई लड़की नहीं आई और औरत की नज़र अंदर दीवार पर लगी एक तस्वीर पर पड़ती है जो उसकी बेटी की होती है। इतने में फोटोग्राफर अपना कैमरा तैयार कर लेता है। औरत उसे पुलिस की धमकी देती है। वो घूमके उसकी फोटो ले लेता है और औरत ग़ायब हो जाती है। "दरअसल उस कैमरा से जिसकी भी फोटो ली जाती है, वो इंसान तस्वीर में क़ैद हो जाता है।" 10 मई 2020
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