पाजेब

कुछ नहीं कहना मुझे
चुपचाप सब सहना मुझे
हर किसी ने पांव में
पाजेब सा पहना मुझे।।

टखनों में ही जंचता रहा
पैरों में ही सजता रहा
वो जिस तरह रखते क़दम
मैं उस तरह बजता रहा।।

तक़दीर ये नाराज़ है
न क़ाबिल-ए-बर्दाश है
जो आह है मन की मेरे
औरों की ख़ातिर साज़ है।।

पत्थर भी हूँ, कुछ रेत हूँ
अपने ही दिल पे ठेस हूँ
सिक्का था जब तब खोटा था
अब चांदी की पाजेब हूँ।।

             ।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
10 अगस्त 2025
21:58

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