तुम्हारी आँखें
तुम्हें छूना मेरी चाहत थी तुम्हें देखना मेरी इच्छा,
तुमने जब मेरी इच्छा को जाना तो सौंप दिया ख़ुदको मेरी बाँहों में, तुमने लहराती ज़ुल्फ़ों को मूझपर बिखेर दिया
और उडेल दिया अपना पूरा बदन मुझपर।
मैंनें पहली बार तुम्हारी नज़रों में इतनी गहराई से देखा,
तूम्हारी आँखें कितनी चमक़ रहीं थी।
तुमने मुझे छुआ और मेरे मन का वेग और बढ़ा दिया,
मैंनें नज़रें झुकाई तो मेरी नज़रें तुम्हारी गर्दन निहारने लगी,
वहाँ से नज़रे नीचे फिसली और ठीक तुम्हारे सीने पर जाकर ठहर गई।
इतना ठहराव काफ़ी था मेरे वेग को बहते लावे में बदलने के लिए।
अब मैं तुम्हारी नाभी को छू रहा था
और नज़रें तुम्हारे चमकते बदन को
ऊपर से नीचे तक हर तरह से नाप चुकीं थीं।
अचानक तुमने फिर झटके से अपनी घटाएं मुझपर बिखेर दी।
मैंनें उन्हे हटाया तो मेरी नज़रे एक बार फिर
तुम्हारी चमकती हुई आँखों पर जा टिकी।
और अचानक मूझे एहसास हुआ
कि इतने सौंदर्य के बाद भी एक चीज़ है जो सबसे ख़ूबसूरत है।
तुम्हारी आँखें।
मैं अब तक इन आँखों में झांक रहा हूँ,
मैं तब तक इन आँखों में झाँक सकता हूँ,
जब तक मेरी आँखों में झांकने की क्षमता है।
पर यदि तुम असहज़ हो जाओ तो बताना।
तभी मैं समझ पाऊंगा मेरे प्रेम की सीमाएं क्या है।
।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
29 अगस्त 2024
01:11
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