नहीं जानता
नहीं जानता मैं कि दुनिया में क्या होता है
कौन सच में हंसता है कौन सच में रोता है।।
कौन किसका हाथ पकड़ सूनी राहों पर चलता है
कौन किसे अपने रस्ते पर कांटों के जैसा खलता है।।
कौन किसे अपना कहता और कौन किसे अपना मानें
कौन किसे कितना पहचाने कौन किसे कितना जानें।।
कौन सही में प्यार करे और कौन कहे बस करते हैं
कौन किसको देखदेख जीवन में रंग भरते है।।
नहीं जानता मैं कि प्यार में कितनी हक़ीक़त है
किसके लिए ये कंगाली किसके लिए ये बरकत है।।
किसको सच में इश्क़ हुआ किसने बस यूहीं माना है
किसने सामने वाले का मन चेहरे से ही जाना है।।
कौन किसके हो बैठें और हैं कौन जानकर अनजानें
किसके लिए हम अपने हैं और किसके लिए हैं बेग़ानें।।
इन सारी बातों का जवाब और ईलाज एक ही दिखता है
जो जितना छल जानता है वो उतना ही ज़्यादा टिकता है।।
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