ताज
जैसा था चाहा हमनें
वैसा ये जहां न बन सका
इस अजनबी सी दुनिया में
कोई सगा न बन सका।।
आज भी जमुना किनारे
यूँ ताज अपना रो रहा
मुमताज तू न बन सकी
मैं शाहजहां न बन सका।।
पर दिख रहा है आज भी
देखो ताज और बात है
आज भी खड़ी है चाँदनी
वो रात और बात है।।
तुम भी ले रही हो सांस
मैं भी हाल ले रहा
खुश हैं दोनों पर मगर
ये बात और बात है।।
।। गौरव प्रकाश सूद।।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
17 मई 2025
11:15
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