आओगी
गीत तुम्हारे पाकर के सागर ने सीखा बहना है
देखके तुमको बादल ने बूंदों का गहना पहना है।।
घनी घटाओं ने तुम्हारे केश की छांया ओढ़ी है
चलें हवाएं जबसे तुमने ये जुल्फें खोलके छोड़ी हैं।।
काली रातों ने इन दोनों नैनों से चुराई सुर्ख़ी है
गंगा की धारा पावन तेरी क़मर के बल पे मुड़ती है।।
होंठों की लाली ऐसी ज्यूं कलियों से शबनम गिरती हों
आशाएं हमें उठती-झुकती पलकों के सहारे मिलती हों।।
तेरे नटखट से चेहरे को कई कई चाँद देखकर रोते हैं
जल-जलकर पीले हो बैठें और रात-रात न सोते हैं।।
चाल तुम्हारी देख-देख मयूरी चलना छोड़ चुकी
तुझे घूरने अब तक बैठी हैं रातें ये ढ़लना छोड़ चुकी।।
गालों पे हंसी यूं खीलती हैं कोई फूल भला क्या खिल पाए
अदा तो इतनी क़ातिल हैं किसी परी को भी न मिल पाए।।
मेरे प्रेम ने सबकुछ कहने का साहस ये आज जुटाया है
अब और छुपा नहीं सकता मैं अबतक जो राज़ छुपाया है।।
अपने पावन पदचिन्ह से क्या मेरे घर को सजाने आओगी
कोई प्रीत लगाए बैठा तुमसे, तुम प्रीत निभाने आओगी।।
।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
26 मई 2025
00:00
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