छपक
तुम मेरे जीवन में छपक से आई हो,
जैसे आई हो बारिश की कोई बूंद सावन का संदेश लिए,
धरती को सुनाने और खिल गए हों जिसकी आहट मात्र से ही
मूर्झाए हो फूल, सरसराते हुए पत्तें,
जिसकी एक बूंद से शितल हो उठ्ठी हो तपते रेगिस्तान की रेत, काले पहाड़ की ढलानें।
जिसके छींटों ने जैसे नर्म कर दिया हो जलते सूरज का मन
और सजा दिए हों क्षितिज पर सैंकड़ो रंग मिलाकर किरणों के संग,
जिसकी सोंधी सुगंध उसके सौंदर्य का प्रमाण है
और प्रमाण है जो आशाओं का,
तुम मेरे जीवन की वही बारिश हो
जिससे भीगा है मेरा मन, भेस और भाव भीतर तलक,
जिसके स्पर्श से कायम है सांसें अब-तक।
जो पूंजी है मेरे कर्मों की उस फल की भांति हो तुम
जिसके होने से है विश्वास मेरा प्रार्थना, प्रेम और ईश्वर पर।
ये बड़े शहर की बड़ी इमारतें हमें बड़े गौर से झांकती हैं पर चल सकता हूँ फिर भी मैं तुम्हारा हाथ थामें इस गीली सड़क के इस छोर से उस छोर तक बिना किसी डर, भय और बाधा के चुंकि मुझे प्रयोजन नहीं है शहरों से और न शहर के मुल्यों से ही,
जो यहाँ कि इमारतों की भांति कभी भी ढह जाए।
मेरा रिश्ता गाँव से है और तुम मेरा वही गाँव हो,
जहाँ साधन भले ही कम हों परंतु पूर्ण है सहज़ता जहाँ,
सरलता जहाँ का गहना है और वास्तविकता जहाँ की वेशभूषा, ममता ही जहाँ के मूल्य हैं, वही गाँव हो तुम मेरा।
और आज इस शहर में मेरा गाँव मेरे साथ-साथ भीग रहा है
और भीग रहा हूँ मैं जैसे बचपन में भीगा करता था
अपने गाँव में अपने गाँव का हाथ पकड़ कर
और गिर रही हैं जहाँ बारिश की बूंदें छपक करके,
तुम मेरे जीवन में ऐसे ही छपक से आई हो।।
।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
25 मई 2025
12:34
Comments
Post a Comment