"सखी जो कहकर जाती"

उस दिन जब तुम छोड़ चली
हृदय महल ये सोने का
मन पर पहाड़ की भांति सा
आघात पड़ा तुम्हें खोने का।।

अकल पे अड़चन तबसे है
और बार बार दिल पूछे है
सखी जो मुझसे कहकर जाती
तो कारण न होता रोने का।। 

ये माना तुम पर उलझन थी
और गति पे अटकल छांई थी
अपने हितैषियों के मुख से ही
ये मति भ्रष्ट कहलाई थी।।

था पूरा तुमको अधिकार
आँखों में फांस पिरोने का
सखी जो मुझसे कहकर जाती
तो कारण न होता रोने का।।

            ।। गौरव प्रकाश सूद।।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
17 मई 2025
13:00 

Comments

Popular posts from this blog

धुंधली पड़ती तस्वीरें

"कहीं के नहीं रहे"

दिल्ली सरकार, आप की सरकार