धर्म का गांजा
सांसों में घोलकर के बस ज़हरीली हवाओं को
धर्म का गांजा पिलाकर भटका दिया युवाओं को
जिसने जलन में जलाया पडोसी का मकां ही था
न जाने आग खा गई कैसे उसी के गाँव को।।
बिलख़ रहे हैं बच्चे पर वो फिर भी छाती ठोकते
हर एक मंच से रात-दिन कुत्तों के जैसे भोंकते
अब कोई हज़रत है बचा इस मुल्क का मेरे ख़ुदा
जिसका ईमान आग पे आकर के आब छोड़ दे।।
ये आग नाग सी है बस आगे ही आगे बढ़ रही
हर एक गुल को फूल को पलभर में है निगल रही
कैसी सिज़ा चली कि खा रही है सब रंगो बहार
हर एक ख़ूबसूरती है गल रही पिघल रही।।
हाँ मानना पड़ेगा कि कलयुग बड़ा ही घोर है
सच का ज़माना ही नहीं चोरों का यहाँ ज़ोर है
सोने की चिड़िया में बड़ा सा छेद कर चुकें हैं जो
वो जानते नहीं अभी बाक़ी कहानी और है।।
#ऐसावैसाwriter
#दर्दकाकारवां
25 अप्रैल 2025
11:00
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