"बाक़ी है"
मैं हूँ अकेला इतना के हर बात बची है कहने को
न साँस ही खींची जाती है न जी करता यहाँ रहने को।।
कोई एक कभी तो आकर के दो बातें मुझसे कर लेता
मैं इतनी दुआ देता उसको हर दुखड़ा उसका हर लेता।।
जब भी ये नज़रें उठती हैं तलाश करें जाने किसकी
ये देख के हैरां होता मैं उम्मीद बची अब भी किसकी।।
अब तो ज़रा मन को समझा लूँ अब तो ज़रा सच को अपना लूँ
अब तो कहूँ मौत हुई दिल की अब तो ज़रा सपनें दफ़्ना लूँ।।
हर बार यही तो करता हूँ हर बार की ये ही बातें हैं
हर बार दफ़्न हो होकर ये क्यों कब्रें चीर के आते हैं।।
हर बार तो कोई आता है हर बार कहीं फिर चल देता
हर बार वो अपने काजल को चेहरे पर मेरे मल देता।।
मैं अब भी सफ़र में बाक़ी हूँ तन्हां हूँ लेकिन काफ़ी हूँ
कोई साथ मेरे कभी रहा नहीं मैं ख़ुद ही ख़ुदका साथी हूँ।।
मेरी आँखों ने रो रोकर इस चेहरे को मेरे धोया है
मैंनें पाया है आख़िर ख़ुदको चाहे फिर सबको खोया है।।
न क़समें हैं न वादें हैं न चिकनी-चुपड़ी सी बातें हैं
क्या नींद कभी जाना ही नहीं जलती-जलती सी रातें हैं
कितने लुट गए कितने टूटे अरमान अभी भी बाक़ी है
कई काम अभी भी बाक़ी हैं ये जान अभी भी बाक़ी है।।
।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
02 नवम्बर 2024
10:30
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