"हैरान हैं सभी"

किसी के हो भी न सके
किसी की ली भी न क़सम
किसी को भूल पाए न
किसी के बन सके न हम।।

क़त्ल हुए जगह-जगह
कुछ बाक़ी न बच सका
हवा में ख़्वाब उड़ गए
सब होके धुआँ-धुआँ।।

ज़रा थामा जो अपने को
तो अधूरे से रह गए
जो कुछ लम्हें हैं दरमियां
बुरे-बुरे से रह गए।।

न कोई कल भी था यहाँ
न आज ही है कोई भी
मेरे ग़म को लगा गले
न आँख रोई कोई भी।।

न कोई आस भी बची
बची न जान है कहीं
मैं कैसे जीता जा रहा
यहाँ हैरान हैं सभी।।
            ।। गौरव प्रकाश सूद। ।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
03:37

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