"मेरी निष्ठा मेरी आशा"
जब सपनों की आहट से मेरी नींद उचट जाती है
जब चंद्रकिरण के होंठों से काली रात छिटक जाती।।
तब उलझा - उलझा सा ढूंढू मैं सबसे पुराना मीत
बांहों में भरकर गाती है जो निरे वीर रस के गीत।।
जिसके पल्लू की छांव में वटवृक्ष जैसा संरक्षण है
जिसका मेरे सुख-दुख से सीधा-सीधा सांझापन है।।
जो माथे पर रखदे हाथ तो मन चिंतामुक्त हो जाता है
जिससे दूरी ये हृदय मेरा क्षणभर भी न सह पाता है।।
जो दूर है मुझसे आज भले जीवन की पर वो धूरी है
वो है तो है अस्तित्व मेरा उससे ही सांसें पूरी हैं।।
वो ही मेरा ब्रम्हांड सकल उस ईश्वर की परिभाषा है
उसमें ही मेरी निष्ठा है एक वो ही मेरी आशा है।।
।। गौरव प्रकाश सूद ।।
#ऐसावैसाwriter
06 जून 2024
21:00
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