"प्रिय"

हर द्वीप प्रबल है, प्रेम अटल
पूर्ण अपना स्वाभाव सकल
उचित है मोह तुमसे ये मेरा
उचित रिश्ते का भाव अटल।।

जब भी मैं ये मीचूँ लोचन
तुम ज्योति बनके आती हो
आँखें खोलूं तो प्रिय मेरी
मेरे समक्ष प्रकट हो जाती हो।।

पहले दिन से तुम्हें पाने को
यूँ गाँव - गाँव में डोलूं मैं
जी चाहता है छोड़के सब
तुम्हारे ही पीछे होलूं मैं।।

शीतल-शीतल सी वायु है
पंछी श्रृंगार में गाते हैं
जिन्हें मिलना होता सुनो प्रिय
अंतिम में मिल ही जाते हैं।।
                  ।। प्रकाश गौरव ।।

#ऐसावैसाwriter
29 अप्रैल 2024
11:00 

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