"वो और थे जिन्होंने नाक़ामी क़ुबूल ली"

एक युग से परेशां हूँ, परेशां हूँ एक हद तक
कब तक आस टूटेगी, दिल रोएगा कब तक
यकीं है फिर भी ख़ुद पे आसमां से भी ऊँचा
हार मानूंगा नहीं मैं बाक़ी है जान जब तक।।

अब पहले की तरह रोज़ रोता नहीं हूँ मैं
मीठे-मीठे बोल पे आपा खोता नहीं हूँ मैं
हैरान हूँ ख़ुद में आते हुए बदलाव देखकर
किसी के साथ होकर भी होता नहीं हूँ मैं।।

जब लोग ग़ुज़र गए तो वक़्त क्या बड़ी चीज़ है
ज़िंदगी तो बुलबुला है इससे क्या ही उम्मीद है
यहाँ कितने ही आए और कितने ख़र्च हो लिए
हम अब तक जमे खड़े हैं, हम कोई तो चीज़ हैं।।

पांव में बेड़ियाँ थी, झटके से खोल ली
ज़ख़्मों के हर सिरे पर हज़ारों शूल ली
सिर से दीवारें तोड़कर रस्ता बनाऊँगा
वो और थे जिन्होंने नाक़ामी क़ुबूल ली।।

                            ।। गौरव प्रकाश सूद। ।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
01 दिसम्बर 2023
11:30 pm

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