शरीफ़
एक सीधे - सच्चे, शरीफ़ इंसान की हालत जंग में क़ैद हुई उन औरतों की तरह होती है जिनके घर के मर्दों को गोलियों से छलनी कर दिया गया हो या चाकू गोद - गोदकर उनका पुर्ज़ा-पुर्ज़ा रेतकर बेरहमी से मार दिया गया हो और फिर उनके लोथड़ों को जानवरों के सामने डाल दिया गया हो। जिसके बाद उन औरतों को बालों से पकड़कर सड़क पर घसीटते हुए क़ैद कर चौराहों व बाज़ारों में उनकी आत्मा को बार-बार उधेड़ा जाता है, नौंच ली जाती है जिनकी बाहरी-भीतरी खाल और चबा लेते हैं जिनका अंग-अंग दरिंदें अपने बेदर्द जबड़ों से।
उन दुखियारी औरतो में होती हैं बूढ़ी-जवान विधवाऐं और न जाने कितनी कमसीन किशोरी भी।
जो शुरू - शुरू में मदद की गुहार लगाती हैं, ईश्वर को याद करती हैं और अंत में हार जाती हैं। जो एक वक़्त के बाद दर्द ज़ाहिर तक नहीं कर पाती, चींख तक नहीं पाती जबकि वो भली-भांति जानती हैं कि उनकी चींख ही दरिंदों की दवा और सुख की पुकार है जिनकी साँसें तो चल रहीं हैं पर जीने की इच्छा दब गई है किसी प्रबल पहाड़ के नीचे।
वो पहाड़ जिसपर गरिमा हनन की चट्टानें खड़ी हैं,
जिसपर वेदनाओं के जंगल उगे हैं और जो भारी है मृत्यू से भी।
जिसे सह पाना बड़ा मुश्किल है और हटा पाना नामुमकिन।। ऐसे व्यक्ति के पास दो में से कोई एक रास्ता होता है।
या तो यूं हीं जीते चले जाने का रास्ता
या शराफ़त को मार देने का रास्ता।।
#ऐसावैसाwriter
#दर्दकाकारवां
10 नवम्बर 2023
02:00 am
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