"निरर्थक हो जाओ"

जब सब तुममें कोई अर्थ ढूंढने लगे
या अपने मत से अर्थ लगाने लगे
तो निरर्थक हो जाओ तुम, और
झोंक दो बचा-कुचा जीवन
आग से झुलसती भट्टी में।
तप करलो, ताप सहलो, चींखों मत
मौन हो जाओ, जलने दो कटू
अंगारों से अंगों को और पिघलने दो
हृदय को लावा बनकर बह जाने तक
आह न करना, चींख न लगाना।
हर रोग, हर पीड़ा को अनजाना कर दो,
डंक मारती जिह्लाओं को अनसुना,
छाती भेदते शब्दों को अश्रुत और
नुगरी आँखों का परिहार करो,
छलियों-कपटियों को अनदेखा।
कोई तुम्हें कितना भी चौंकाए
पर तुम कोई प्रतिक्रिया मत देना
मत कहना कभी के तुम्हें पीड़ा हुई
होने देना भावक्षती, पर अपने
लाल घाव खोलकर मत दिखाना।
बहुत मौन के साथ तुम जलकर
विलंबित होकर अंत में निरर्थक
हो जाओ जिसके पश्चात् तुम्हारे लिए
किसी पीड़ा, किसी घाव, किसी कपट
किसी छल का कोई अर्थ नहीं होगा।।
                    ।। गौरव प्रकाश सूद ।।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
03 जुलाई 2023
10:06 am

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