"मेरा सबकुछ जा चुका अब ग़र मैं बचा तो क्या बचा"।

मेरा सबकुछ ले जाने के बाद भी
तुम छोड़ गई हो एक अधमरा सा पाग़ल आशिक़।
जो अपनी सूज गई आँखों के आड़े आते
सूखे बालों को भीगने से बचा रहा है।
और बचा रहा है उस ख़लिश को भी जो तुमने
बेरहमी से रख छोड़ी इसकी पीली पड़ी नसों के
बहते ख़ून में जो रह-रहकर हिलोरे मारता है,
बाहर आ जाने के लिए और बह जाने के लिए।
तुमने इसकी भूरी आँखों को पहले लाल रंग
दिया फिर वो भी छीन लिया इससे।
उसके बाद ही से इसकी काली पुटलीयाँ सुफ़ैद पड़ गईं
फिर इसने जहाँ भी देखा बे-रंग देखा, बे-नूर देखा।
होंठों से इसके मौन बहने लगा या बहने लगा ख़ुर्दुरापन
जहाँ छंद बहा करते थे कभी, किसी के जाने से पहले।
चेहरे से रौनक की बजाय टपकती है मायूसी
अब महफ़िलों को ये, और इसे महफ़िलें रास नहीं आती।
हरकतें बे-सुध सी हैं, अब चाल बे-हुदा बनी
ये वो ही तो है जो चलता था तो हवा आहें भरती थी।
सब कहते हैं, हाँ ये सब कहते हैं ये वो ही तो है
दीवाना सा जो अब बे-होश पड़ा रहता है बदहवास सा,
बद्तमीज़ दिन और रात के दरमियां।
इसके अलावा तुम छोड़ गई काले कड़वे साग़र यादों के
जिन्हें पी पीकर ये बाक़ी ज़िंदगी उदास कर बैठा।
और दे रहा है अपनी आख़िरी गवाही या दलील ये कि
"मेरा सबकुछ जा चुका अब ग़र मैं बचा तो क्या बचा"।।
                                              ।। गौरव प्रकाश सूद। ।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
26 मई 2023
01:00 pm

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