तेरा जिस्म एक गुलिस्तां है

तेरा जिस्म एक गुलिस्तां है
और होंठ ये ग़ुलाब है
आँखें मयखाने से हैं
तू चलती - फिरती शराब है।।

तू शब है चाँदनी भरी
चाँदी टपकती है माथे से
ये चाँद, सितारे, सूरज सारे
बिन तेरे हैं आधे से।।

गालों पर केसर बिख़री है
तू रौशनी है आफ़ताब है
तश्बीह तेरी नामुमकिन है
जन्नत से उतरी शबाब है।।

दिल तेरा इतना सुंदर है
क्या-क्या संभाले रखता है
इक हमसे ही इसको नफ़रत है
हमको ही टाले रखता है।।

मेरे हर एक सवाल का

तुम ही तो जवाब हो

मैं तो बस शायर ही हूँ 

तुम ग़ज़ल की मुकम्मल क़िताब हो 

         ।। गौरव प्रकाश सूद ।।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
01 मई 2023
05:30 pm

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