पिताजी की नींद

कुछ समय पहले तक
पिताजी की नींद बड़ी कच्ची हुआ करती थी
जो उचट जाया करती थी
किसी मामूली सी आवाज़ से
माँ या बहनें उनसे कोई बात पूछती,
या कोई राय लेनी होती तो वो दे देते थे
जवाब बिना आँखें खोले, झट से 
फिर चाहे वो 1 घंटे से ही क्यों न सो रहें हो
घर में चलते-फिरते उनकी खाट के पाये को
मेरा पैर छू जाता तो
वो झटके से उठ मुझे पीटने आते
माँ मेरा बीच बचाव करती और वो पलभर में फिर से सो जाते

अब पिताजी बूढ़े हो रहें हैं
उनकी नींद पूरी आज भी नहीं हो पाती
पर अब वो सोते-सोते राय नहीं देते
मेरे लाख बातें करने , हंसने पर भी उनकी नींद नहीं टूटती 
तब तक, जब तक की हम आपस में जिनावरों की तरह चिल्लाते नहीं।
अब हम उनकी नींद टूटने के डर से
संभल-संभलकर, चुप-चाप काम नहीं करते
अब उनकी चारपाई पर पैर टकराने पर भी
वो शांति से सोते रहते हैं।
और अब पिताजी के
लगभग वो सारे गुण मुझमें आ गए हैं
अब मेरी नींद हवा का झोंका भी उड़ा देता है
मैं भी सोते हुए उतना चोकस रहता हूँ
जितना कभी पिताजी रहा करते थे 
मेरी नींद भी वैसी ही होती चली जाएगी
जैसी पिताजी की हो चली थी
ज़िम्मेदारियों के बोझ तले मैं भी इतना दब जाऊँगा
जितने के पिताजी,
इतना के कोई मेरी खाट के पाये को छू तक न सके
चूँकि एक दिन मुझे भी पिताजी होना है
और फिर बूढ़ा होना
पिताजी की तरह।।
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
03 फरवरी 2021

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