मुहब्बत के समंदर का
मुहब्बत के समंदर का, किनारा हो नहीं सकता
वो जो औरों का साथी है, हमारा हो नहीं सकता
ख़ता इक बार कर बैठे , उसे दोहराना फिर क्यों है
गुनाह जो हो गया हमसे, दोबारा हो नहीं सकता।।
तेरी नज़रों के दरिया का नज़ारा कुछ अलग ही था
तेरा कहना, तेरा करना, बताना कुछ अलग ही था
दिल में कुछ अलग ही था, ज़बां पे कुछ अलग ही था
सामने कुछ अलग ही था, बाद में कुछ अलग ही था।।
तुम्हें कितना है अंदाज़ा ख़ता का ये बताना तुम
कभी भूले कभी बिसरे ख़ुद को ही जताना तुम
ये मेरी गुज़ारिश है कि फिर ऐसा न तुम करना
जैसे मुझको सताया है, किसी को न सताना तुम।।
आज मुझसे करो तौबा, आज मुझको न पहचानो
कभी मैं भी तुम्हारा था , ये मानों तुम या न मानों
मुझे था हौंसला सारे ज़माने भर से लड़ने का
तुमसे लड़ नहीं सकता, जीत अपनी यहाँ मानों।।
मुझे धोखा दिया मेरे, ज़माने भर के यारों ने
लौटाया धमका कर.. कलियों ने, बहारों ने
कभी न शांत रह पाया, दहकता रोज़ ज्वाला में
मुझे जलते हुए देखा, पहाड़ों ने, सितारों ने।।
गौरव प्रकाश सूद
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
10 अगस्त 2022
08:30 am
Comments
Post a Comment