मर्ज़ी

मेरा ईलाज मुझ पर ही है
मुझपर हि धुन सवार है

जो है नहीं वो प्रेम था
जो बाक़ी है वो व्यापार है
।।
निभाने को कोई राज़ी नहीं
तड़पाने को सब तैयार हैं

इश्क़-मुहब्बत, क़समें - वादे
झूठे हैं सब, बेक़ार हैं
।।
मुस्कुराहट किसी को भाई नहीं
रुलाने में सबकी शान है

मुझे हंसता हुआ देखकर
सब हैरान हैं, परेशान हैं
।।

काश वो कभी मेरे होते
अरसे से इक यही अर्ज़ी है

पर मिट्टी में मिल जाए हम
उनकी भी यही मर्ज़ी है
।।

           गौरव प्रकाश सूद 
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter

07 जनवरी 2022 

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