अपनों की बात

अपनों और ग़ैरों की,बातें ख़ैर सब करते हैं
बोलते हैं बहुत कुछ, पर सच कहने से डरते हैं
मुझे याद है ज़माने ने जब
मेरे सपने नौंच-नौचकर खाए थे
सबसे पहले ख़्वाब कुचलने
मेरे अपने ही आए थे।।

मैं दीन-धरम् का पक्का था 
कभी शक़ किया न करता था 
जिन्होंने मारा घोंट-घोंटकर 
उनपर ही तो मैं मरता था 
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter 
25 सितम्बर 2021 

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