मायूसी की महफ़िल

दौड़ती सड़क, वीरान पगडंडी
छिदली हुई घास और सहमे हुए पेड़
याद दिलाते हैं मुझमें कौना उदासी का कोई
जो ये कहता है कि तू वीरां है
इन सब की तरह

तैरते झोंके हवा के जो छू रहे हो मुझे
तो ये लगता है कि मैं ज़िंदा हूँ
कुछ इस ही तरह

ग़र शिक़ायत भी करूँ जीवन से
तो मिल क्या जाएगा
जो बचा है इक पल
वो भी छिन सा जाएगा

मेरी आदत ही तो थी जो
ख़ुदको कोसता था मैं यूँ
न जो बेचैनी न ही आज
जो मुझको है सकूं

ग़र जो बचता है
तो टूटा सा इक दिल ही तो है
बाक़ी जो साथ है
मायूसी की महफ़िल ही तो है।।
                गौरव प्रकाश सूद 
#दर्दकाकारवां 
#ऐसावैसाwriter
20 अगस्त 2021

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