देखते हैं
और मैं पड़ोस के दोस्त को टोह ने
उस बाज़ार में जा घुसता जाता था
जहाँ सभ्य आदमी का जाना
असभ्य समझा जाता था
पर जिसको ढूंढने गया था मैं
वो भी तो सभ्य समाज से था
न जाने फिर क्या रिश्ता
उसका इस गंदले बाज़ार से था
जैसे ही मैं भीतर धमका
किसी ने मुझको खींच लिया
नर्म-नर्म ठंडे हाथों से
कुर्ते को मेरे भींच लिया
मैं बच्चा ही था
शर्म के मारे नज़र भी न उठ पाई थी
आस-पास की बाज़ारू मुझपर
ठिठक-ठिठक लहराई थी
9 फरवरी 2021
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