the tree of love
एक लड़का जिसकी उम्र लगभग 26-28 साल की है। वो अपने जीवन में बिल्कुल अकेला है क्योंकि वो एक लेखक है और उसे अपने इस काम से बहुत प्यार है, पर वो अभी तक अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर पाया है। उसने बहुत अलग-अलग बेहतरीन क़िस्म की कहानियाँ और स्क्रिप्ट लिखी हैं, पर अब - तक कोई ऐसा नहीं मिला जो उसकी कहानियों को समझे और उनपर काम करे। इसीलिए वो बहुत अकेला पड़ गया है, उसके भाई - बहन, माँ बाप ने भी उसे त्याग दिया है उसे वो किसी लायक नहीं समझते। वो अपने घर का मंझला लड़का है। उसकी एक प्रेमिका जिसके साथ वो काफ़ी समय से था वो भी इसे धोखा दे चूँकि वो इसे पागल समझने लगी थी और इसके साथ उसे अपना कोई भविष्य नज़र नहीं आ रहा था। इसे सब पाग़ल इसलिए समझते हैं चूँकि ये सारा दिन सारी रात लिखता ही रहता है। न इसे खाने का होश न पीना का। सब इसे छोड़ गए लेकिन ऐसे आलम में भी ये अपना काम पूरी शिद्दत से करता है। इतनी शिद्दत से के ये अपने लिखे किरदारों से सवाल - जवाब भी करने लग जाता है। पर अब इसे एहसास होने लगता है कि ये बिल्कुल अकेला है। ये एकदिन एक कहानी लेकर एक प्रोड्यूसर के पास जाता है। बहुत कहने के बाद वो इसकी कहानी सुनने के लिए तैयार हुआ। ये वहाँ से वापिस लौट रहा होता है तो रास्ते में इसे एक पेड़ नज़र आता है जो एक छोटे से जंगल का हिस्सा था। वो पेड़ देखने में बहुत अनूठा होता है। ये उसकी तरफ़ बढ़ता चला जाता है और थोड़ी देर उसे देखत रहने के बाद अपने घर लौट जाता है। ये सोचकर कि कल शाम इसे के नीचे बैठ एक कविता रचूंगा। अगली शाम वो आता है और कविता लिखना शुरू करता है। पर उसे ये समझ नहीं आता कि वो लिखे तो किस रस पर रोष पर जो उसे सब पर बहुत सारा था, धोखे पर जो उसे अपनी प्रियसी से भी मिला था, समाज पर जिसका वो हिस्सा ही नहीं था...। वो सोचकर अपने पैन और काग़ज़ को वापिस रख चल पड़ा था तभी पेड़ से एक पत्ता गिरा। जिसपर लिखा था "प्रेम" उसने कुछ देर रुककर उस पत्ते को फ़ेंक दिया। तभी दूसरा पत्ता उसकी हथेली पर गिरा "प्रेम पर लिखो"। उसने चौंककर ऊपर देखते हुए कहा "ऐसी चीज़ कैसे लिखूँ, जो मेरे जीवन में है ही नहीं और कभी होगी भी नहीं" तभी पेड़ से एक और पत्ता गिरता है, जिसपर लिखा है "कोशिश तो करो, तुम्हारे भीतर सब है, तुम कुछ भी रच सकते हो, कुछ भी" तभी वहाँ कुछ लड़के मोटरसाइकिल से शोर मचाते हुए आते हैं। और लेखक अपना सामान उठा अपने घर की तरफ़ लौट जाता है। वो सो जाता है " ये कहीं अजीब सी जगह फ़ंसा होता है, और मदद के लिए सबको बारी - बारी पुकारता रहता है पर कोई मदद नहीं करता सब एक-एककर इसे छोड़कर चले जाते हैं और ये हार कर मदद मांगना छोड़ देता है तभी घोर अंधेरे को चीरती हुई एक हरी रौशनी इसकी ओर बढ़ती है जो एक बेहद ख़ूबसूरत लड़की है वो इसे बचाकर ले चलती है तभी पीछे से उस लड़की के सिर पर वार कर उसे मार दिया जाता है वो वार उसके परिचित ही करते हैं वो चींख पड़ता है " अचानक उसकी नींद टूटती है और उसे एहसास होता है कि ये एक सपना था। वो फ़र्र - फ़र्र उठकर लिखना शुरू कर देता है और फिर से उस पेड़ के पास जाता है। वो पेड़ से बातें करना चाहता है पर वो नहीं जानता कि जवाब आएगा या नहीं। वो पूछता है " तुम मुझे जानते हो? " पत्ता टूटकर गिरता है जिसपर लिखा है "हाँ, और तुम्हारी पीड़ा भी" वो लड़का उसे कहता है "यूँ हीं बात करोगे क्या, फिर ऐसे तो तुम गंजे हो जाओगे, क्या तुम किसी और तरीक़े से मुझसे बात नहीं कर सकते, जिससे तुम्हें नुकसान भी न हो?" थोड़ी देर तक कुछ नहीं होता, फिर एक शाख आकर लेखक के पास रुक जाती है, लेखक घबराते हुए उस शाख पर चढ़ जाता है और फिर शाख अपनी जगह पर चली जाती है लेखक को उठाए और फिर वो पेड़ बिना पत्ता तोड़े उससे बात करता है अपनी पत्तों पर लिख - लिखकर। बातों - बातों में कब दिन ढल जाता है पता ही नहीं चलता। लेखक न चाहते हुए भी वहाँ से लौट जाता है ये कहकर "कल फिर आऊँगा, तुमसे मिलकर अच्छा लगा" । दोनों कई दिनों तक रोज़ मिलते हैं और बहुत बातें करते हैं। और न जाने दोनों को एक-दूसरे से अब प्यार हो जाता है, लेखक एक दिन मज़ाक-मज़ाक में कह देता है "तुम अग़र बोल पाते होते तो बात ही अलग़ होती, पर तुम तो लिखते ही हो बस "
पेड़ उसे इसे अगली रात बुलाता है और यहीं रुकने को कहता है। वो आ जाता है, और जब वो पेड़ पर सो जाता है तो उस पेड़ से एक बहुत ख़ूबसूरत अप्सरा निकलती है जिसने हरा लिबाज़ पहना है और जिसकी रौशनी से वो भी रौशन हो जाता है, ये वही लड़की है जो उसके सपने में आई थी। वो एक दूसरे में इस क़दर डूब जाते हैं कि रात को सोने ही नहीं देते और सुबह का एहसास तक नहीं हो पाता उन्हें। जब वो सुबह उठता है तो शाखरानी की पत्तियों में उलझा रहता है। फिर वो एक-दूसरे को घूमते हैं और शाखरानी पत्तियों में बदल जाती है। वो नीचे उतरता है तो मन ही मन शर्माते हुए घर लौट जाता है। अब वो हर वक़्त उसके साथ रहना चाहता है। उसे वो सबकुछ बता चुका है कि वो कितना अकेला था उससे मिलने से पहले। अब वो वहाँ लौटता है तो कुछ गाड़ियां वहाँ खड़ी रहती हैं जो उसके जाने के बाद चल देती हैं वो चौंक जाता है कि इतनी गाड़ियां यहाँ क्या करने आई थी। वो अपना कुछ सामान पेड़ पर ही टांगे रखता है और अब उसे पत्तों को पढ़ना नहीं पड़ता शाखपरी उसक बाबाहों में बैठ उससे बतलाती है और प्यार करती है। अब उसकी बांहें ही उसका घर है। एक दिन वो बहुत शोर के साथ जगता है। कुछ लोग उसे पेड़ से उठाकर नीचे पटक देते हैं। वो जंगल काटने वाले हैं जो इस पेड़ को भी काटेंगें ये बहुत ज़ोर लगात है अअपने प्यार को बचाने का पर इसकी एक नहीं चलती और उस पेड़ को जड़ से अलग कर दिया जाता है। जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर पाता और बेहोश हो गिरता है। जब वो होश में आता है तो उसकी बची-कुची लकड़ियों को अपने सीने से लगा बहुत रोता है और अपने घर ले आता है। कुछ दिन बाद वो देखता है कि उसके घर के छोटे से हिस्से में कुछ अंकुर फूंट रहें है और उसे याद आता है कि एक दिन वो दोनों बात कर रहे थे कि जो चीज़ जन्म लेती है, बढ़ती है वो नष्ट भी होती है। शाखपरी ने पूछा "जैसे?" तो लेखक ने कहा "जैसे इंसान और पेड़", शाखपरी ने कहा "जैसे मैं और तुम" लेखक ने कहा "हाँ और मरने के बाद इंसान को या तो जला दिया जाता है या दफ़ना दिया जाता है। तो शाखपरी ने कहा था " मेरे फूल और बीज को तुम दफ़ना देना और मेरी टहनियों को जला देना मेरे जाने के बाद।" लेखक ने कहा "और मेरे मरने के बाद क्या करोगी? " शाखपरी "पता नहीं पर हम दोनों हमेशा साथ रहेंगें" । तब लेखक उसके कुछ फूल और बीज घर ले आया था और उन्हें गाड़कर उनका नियमित ध्यान रखने लगा। आज ये अंकुर फूंटते देख उसे बहुत खुशी मिली और मन की शांति भी और उसे एहसास हुआ कि शाखपरी हमेशा उसके साथ रहेगी और उसकी बची लकड़ी को भी जला दिया। वो पौधे तेज़ी से बढ़ने लगे और एक रात उन पौधों से एक आकृति बनी जो शाखपरी की थी और अपनी हरी चमक को लिए लेखक के पास जा लेटी, लेखक की तुरंत आँखें खुली और उनमें पानी भर आया और दोनों होंठ से होंठ मिला एक दूसरे को चूमने लगे।
वहीं बैकग्राउंड में वो सारी चीज़ें नज़र आ रही है जो लेखक के साथ में हुई। उसके परिवार का दूर होना, प्रियसी का धोखा देना। फिर एक कहानी लिखकर प्रोड्यूसर के पास जाना। प्रोड्यूसर उसे ये कहकर भगा देता है कि "ऐसा थोड़ी होता है, एक पेड़ का इंसान से प्यार, वाहियात इंपोसिबल"। लेखक उसे डांटते हुए ये कहकर लौट जाता है कि मैं ये पोसिबल करके दिखाऊँगा और रास्ते में उसे वो पेड़ मिलता है।
अंत में यही लिखा होता है कि वो इंसान और शाखपरी हमेशा के लिए एक हो गए। जो एक पुलिस आफ़िसर पढ़ रहा होता है।
गौरव प्रकाश सूद
09 जनवरी 2021
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