लम्बा रास्ता
वो जो पिछले चोंक वाली सड़क है न,
जहाँ तुम अक्सर चलती हो
मन करता है उसे यहाँ खींच लाऊँ,
ठीक अपने घर के सामने
और अपनी आँखें गड़ाए बैठा रहूँ
ताकि जब भी तुम आओ तुम्हें देखूं।
पर फिर डरता हूँ,
कहीं तुम उसपर चलना न छोड़ दो।
रास्ता तो मेरे सामने से अभी भी जाता है तुम्हारा,
पर तुम्हारे पाँव शायद ही कभी इस पर पड़ें हों।
शायद तुम्हें मेरे घर वाला रास्ता पसंद नहीं,
या शायद मेरा घर या शायद.....
मैं पसंद नहीं।
पर मुझे बहुत पसंद है
तुम्हारे घर वाला रास्ता, हमेशा से..
वहाँ से मेरा घर, काॅलेज, थिएटर
सबकुछ बहुत दूर पड़ता है।
फिर भी बहुत अच्छा लगता है
वहीं से घूमकर जाना और आना।
क्योंकि रास्ते में तुम्हारी गली पड़ती है,
घर नहीं दिखता, तुम नहीं दिखती ।
एक बार दिखी थी।
शाम का समय था,
मैं रिहर्सल से लौट रहा था
और हमेशा की तरह मैंनें
लम्बा रास्ता चुना क्योंकि
"बस" ठीक तुम्हारी गली के सामने से जाती है।
मैं बहुत थका हुआ था,
मैंनें बहुत डांट खाई थी,
डांट तो पड़नी ही थी,
हर समय तुम्हारा ध्यान जो रहता है।
उस दिन जैसे ही तुम्हारी गली आने वाली थी,
"बस" बीच में ठहर गई,
और एक-एक पल भारी लगने लगा।
मैं रोज़ की तरह उस रास्ते पर
टकटकी लगाए बैठा था।
बहुत देर बाद "बस" चली
तो शीशे के उस पार तुम दिखाई दी।
तुमने दूधिया रंग की कुर्ती पहनी थी
और वैसी ही मुस्कान
तुम्हारे होंठों पर भी थी।
तुम अपनी सहेलियों के साथ
मोमोज़ खा रही थी,
शायद तुम्हें मोमोज़ बहुत पसंद हैं।
पर मेरी धड़कनें बढ़ चुकी थी
और वक़्त थम गया।
यक़ीन मानों मुझे उन पलों में
किसी चीज़ का ख़्याल नहीं था
तुम्हारे अलावा कोई नज़र नहीं आ रहा था।
फिर अचानक तुमने मेरी तरफ़ देखा
और तब जाके मुझे होश आया।
तुम्हारी किसी सहेली ने
मेरी ओर इशारा करते हुए
तुम्हें कुछ कहा और
तुम ज़ोर से खिलखिला उठी....
तब से रोज़, घंटों उस मोमोज़ वाले के पास
खड़ा रहता हूँ.. तुम तो नहीं दिखी
पर, वो हंसी वो खिलखिलाहट आज तक
मेरे कानों में गुंजती हैं।।
गौरव प्रकाश सूद
#दर्दकाकारवां
#ऐसावैसाwriter
10 अक्टूबर 2020
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