मैं और तुम
सूरज ढल चुका है
किरणें अपना आख़िरी पहरा
बादलों से हटा चुकी हैं
तारें खिल चुकें हैं
और चाँद 🎑 नदी पर अपना रंग...
छोड़ चुका है।।
और किनारे पर बैठे
दूर लौट चुकी किसी क़श्ती का
इंतज़ार करते हम दोनों
बातों के लिए शब्द तलाशते
घास की छुअन को एक - दूसरे
का एहसास समझते
बस बैठे ही हैं
और मन इस डर के मारे
लहरों की भांति
हिलोरे खा रहा है
कि ये इंतज़ार खत्म न हो जाए
सुबह होते-होते
क़श्ती के लौटने पर तुम
भी तो लौट जाओगी आख़िर
और साथ ही लौट जाएगी
मेरी खुशियाँ भी
घास पर पड़ी शबनम
की तरह न जाने कहाँ
जी तो चाहता है
ये इंतज़ार कभी
ख़त्म ही न हो
और न लौटे
कभी कोई क़श्ती
इस किनारे पर, कोई न लौटे
बस बैठा रहूँ
मैं और तुम
एक - दूसरे के साथ
ये हिचकिचाती साँसें लिए
यूँ हीं जीवनभर।।
बैठे रहें... बस।।
#ऐसावैसाwriter
09 सितम्बर 2020
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