समर्पण

बादल-घटा आसमान को ढंक चुके हैं
दोनों प्रेम में दीवानों की तरह अठखेलियाँ कर रहें हैं।
चाँद - सितारे इनके मिलन से शर्मा कहीं छुप गए हैं।
पर ये बेशर्म किसी की परवा ही नहीं करते।
बस बस्ते जाते हैं एक दूसरे के भीतर और भीतर, बेशर्मी के सहारे।
सबकी नज़र इन्हीं पर हैं और ये आँखें बंद किए डूबते जा रहे हैं प्यार में... इतने की मौसम को भी इनका मिलन सुहाने लगा।
मिलन में आँखों का काम कहाँ, कुछ देखना नहीं है, बस करते जाना है सब, जो भी हो रहा है, डुबते जाना है प्रेम में गहरा और गहरा और गहरा। 

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