बुलबुला

न समुद्र ही हूँ, न लहर हूँ विचलित सा
न आसमां सा ठहराव हूँ
न जागीर हूँ किसी का
मैं समय हूँ जो न रुका, न रुक सका
मैं गुज़रा हूँ, गुज़रा हूँ
गुज़रता गया।
मैं बुलबुला हूँ
फूटूंगा, 
फूटूंगा वैसे ही, जैसे बना था अचानक
 क्योंकि "मैं जीवन हूँ"
न रहा, न रह सका।।
#ऐसावैसाwriter 30 अप्रैल 2020

Comments

Popular posts from this blog

धुंधली पड़ती तस्वीरें

"कहीं के नहीं रहे"

दिल्ली सरकार, आप की सरकार