काला अक्षर

मैं एक काले अक्षर की भांति तुम्हारे पत्रों पर रच जाऊंगा
और छूट न पाऊंगा कभी, अंतिम प्रयास के बाद भी।
तुम्हारे पास कोई विकल्प बचेगा नहीं
अतिरिक्त इसके के तुम फाड़ दो उन पत्रों को
या रख दो उसे आग की लपटों के बीच।
तब संभव है कि मैं उन लपटों का उड़ता धुआँ बन जाऊँ
तब भी मैं उन पत्रों को साथ लेकर उडूंगा
जो मुझे अमर, अजर, अवध्य कर देगा चुंकि
तब मैं पत्रों पर न दिखूं शायद, 
पर रच जाऊंगा तुम्हारे घर - आंगन की किसी भीत या छत पर
और उससे भी अधिक तुम्हारे मन केे भीतर।
अब से तुम मुझसे अपना मन छुड़ा न पाओगी, 
न ही छुड़ा पाओगी उन सांसों को जो मुझे छूकर तुम से निकलेंगी
तब मूझे और केवल मुझे ही दोहराएंगे तुम्हारे हृदयस्पंदन। 
तब मेरा रंग-रूप काला अक्षर या काला धूआँ नहीं रहेगा तद्पश्चात बन जाऊंगा मैं-
श्वेत हृदयस्पंदन, नर्म सांसे तुम्हारी,
यदा-कदा टपकूंगा आँखों से तूम्हारी अश्रू बनकर
और जिस दिन ऐसा होगा, हो जाऊंगा मैं और भी पावन।
जो गंगा न हो सके इतना पावन,
आकाश गंगा न हो सके वो पावन, 
श्वेत पवित्र अनछुए बादलों से भी पावन।
तुम्हारी आँखों से टपकने के बाद हो जाऊँगा मैं सबसे पावन
अमर, अजर और अवध्य सदा सदा के लिए
तब मुझसे भी पावन, पवित्र कुछ होगा तो वो होगी तुम।। 
                                            ।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
01 नवम्बर 2025
10:00

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