हिमालय

शिखर को निहारता मेरा मुस्कुराता चेहरा
और अपनी शीतलता से शीतल करता
मेरा रोम-रोम पर्बत का वो अंतिम छोर
जिसे हिमालय कहते हैं।
कहते हैं जिसे धरती का आसमान से सबसे निकट हिस्सा,
बादल जिसके पाँव छूने आते हैं,
लेके आशिर्वाद धरा पर अमृत बरसाते हैं।
सवेरे - सवेरे सूरज उभरने से पहले
संभवतः लेता हो कोई सलाह जिससे और बताता हो
अपना हाल घड़ीभर ठहर कर।
जहाँ चाँद रातभर बैठकी लगा ठिठोलियाँ करता है
और सुनाता है अपने सच्चे-झूठे वृतांत
मन में दबी-दबी ईर्ष्या लिए। 
जिसके स्पर्श से नदियाँ देवी बन जाती हैं
और पूजी जाती हैं संसार भर में।
जहाँ पापात्मा को भी परमात्मा का मिल जाता है स्थान
उसी शिखर को निहारता मेरा मुस्कुराता चेहरा
और अपनी शीतलता से शीतल करता
मेरा रोम-रोम पर्बत का वो अंतिम छोर जिसे
हिमालय कहते हैं।।
                                               ।। गौरव प्रकाश सूद।।
#ऐसावैसाwriter
17 अक्टूबर 2025
09:40

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